Sunday 31 May 2020

लॉकडाउन में आर्थिक मंदी का दंश झेलता बेहाल किसान

लगातार बढ़ते कोरोना मामलों के वजह से सरकार द्वारा बार-बार लॉकडाउन बढ़ाएं जाने का असर चहुं ओर दिखाई पड़ रहा है। किसानों पर इसका गहरा असर पड़ा है। सर्वाधिक प्रभाव सब्जी की खेती पर पड़ा है। सब्जी किसान बेहाल हैं। खून पसीने की मेहनत और लागत के बदौलत अब खेतों में सब्जी की फसल तैयार है, परंतु किसानों को दाम नहीं मिल रहे हैं और ना ही सब्जियां आसानी से बिक पा रही। लागत खर्च निकलना मुश्किल है। जिस वजह से कर्ज लेकर खेती करने वाले किसानों में हताशा छाई हुई है।


किसानों के अनुसार लॉकडाउन में सब्जियों का निर्यात रुका हुआ है। बाहर के व्यवसायी आ नहीं रहे हैं। स्थानीय सब्जी मंडियों में भी आम दिनों की अपेक्षा काफी कम बिक्री हो रही है। लोग आलू, प्याज, चना, सोयाबीन आदि का भंडारण कर घरों में बंद है। बीमारी के डर से अत्यंत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकल रहे ऐसे में खपत बहुत कम हो रहा।
हमेशा महंगा बिकने वाला परवल प्रतिकिलो 10 रुपए से भी कम बिक रहा। करेला और भिन्डी की हालत भी खस्ता है। इन सब्जियों को किसान 2-4 रुपए प्रतिकीलो के दर से बेचने को मजबूर है फिर भी उपज के मुताबिक खपत नहीं हो पा रहा। खीरा और तरबूज भी औने पौने दामों पर बिक रहे। ऐसे में सब्जी उत्पादक किसान सरकार से सहायता मुहैया कराए जाने के आश में हैं।

मौसम की बेरुखी के बावजूद मक्के की फसल काफी अच्छी हुई है, लेकिन लॉकडाउन के वजह से खरीदार नहीं मिल रहे हैं। नतीजन किसानों के सामने आर्थिक संकट आ खड़ी है। किसान खेत से फसल काटकर अपने घरों के सामने रखने को मजबूर हैं। रख-रखाव में उन्हें काफी तकलीफ का सामना करना पड़ रहा, साथ ही उपज के खराब हो जाने का भी खतरा है।

इस बार किसान दोहरी मार झेलने को विवश हैं। एक ओर ओलावृष्टि और बारिश से फसल क्षति हुई बावजूद इसके मक्के की अच्छी पैदावार हुई, लेकिन अब खरीदार नहीं हैं।
पिछले वर्ष लगभग 2000 प्रति क्विंटल तक मक्का किसानों के दरवाजे से ही बिका था। उन्हें मंडी जाने से भी छुटकारा प्राप्त था। ठीक इसके विपरीत लॉकडाउन में दरवाजे पर व्यापारी आना तो दूर बाजार में भी मक्का के खरीदार नहीं है।
  • बिहार में अधिक विकट परिस्थिति
बिहार में हरियाणा,पंजाब या अन्य राज्यों जैसे अनाजों के क्रय हेतु कोई सरकारी व्यवस्था भी नहीं है जिससे किसानों को समय पर उचित दाम प्राप्त हो सके। पारिणाम स्वरूप पैसे के अभाव में खरीफ फसलों की बुआई रुकी है साथ ही सब्जियां कीटनाशक और उर्वरक के अभाव में सुख रहीं।
ऐसे ही हर तरफ से विकट परिस्थिति और आर्थिक तंगी का दुष्परिणाम एक दिन किसानों द्वारा आत्महत्या के रूप में सामने आता है।

Friday 1 May 2020

वर्तमान में सबक लेने के बजाय ढाल के रूप में हो रहा, इतिहास का प्रयोग।


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विगत कुछ वर्षों से भारत में मॉब लिंचिंग की समस्या बढ़ी है, ऐसी ही एक घटना बीते गुरुवार 17 अप्रैल को महाराष्ट्र के पालघर जिले से घटी जहां उग्र भीड़ ने तीन लोगों की हत्या कर दी। मीडिया के एक धड़े द्वारा मृत लोगों को चोर और घटना को चोरी के संदेह में हत्या करार दिया गया। घटना के दो दिन बाद रविवार को इससे जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद घटना की छिपी सच्चाई,भीड़ द्वारा दो साधुओं और एक ड्राइवर की बर्बरता से लाठी- डंडों और हथियारों से हत्या करने की हृदय विदारक तस्वीरें लोगों के सामने आ गई।

सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश

अक्सर जैसा होता है, इस घटना पर भी राजनीति शुरू हो गई। बिना किसी ठोस कारण के इसे सांप्रदायिक रंग दिया जाने लगा, भाजपा द्वारा शिवसेना पर राज्य व्यवस्था ना संभाल पाने का आरोप लगाया गया। विभिन्न पक्षों द्वारा तरह-तरह के बयान सामने आने लगे। इसी बीच एक अन्य धड़ा सक्रिय हो गया जिनके द्वारा इस घटना को इस प्रकार की पिछली तमाम घटनाओं का परिणाम बताया जाने लगा। वे इस घटना के दोषियों की भर्त्सना करने के बजाय इतिहास में वापस जाकर उनके बचाव की कोशिश कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो सरकार पर सवाल से बचकर इतिहास की आड़ में छुपने का आरोप लगाते है और इस बार स्वयं उसी मार्ग पर अग्रसर है। उनके अनुसार जब पिछली बार की ऐसी घटनाओं पर ताली बजाया गया दोषियों का फूल मालाओं से स्वागत किया गया तब ही हमें भविष्य की इस प्रकार की घटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए था, किन्तु वे लोग शायद यह नहीं समझ रहे कि उनके जैसे लोग ही इन घटनाओं के जन्मदाता हैं जो हर बार बेशर्मी से ऐसे कुकृत्यों के बचाव में कुछ ना कुछ कुतर्क लेकर चले आते हैं और घटना का परिदृश्य बदलने की कोशिश करते है। दरअसल अलग-अलग घटनाओं में इन लोगों की विचारधारा और पक्ष तो अलग होते हैं किन्तु इनमें फ़र्क कोई नहीं होता। ऐसे सभी लोग एक ही विक्षिप्त मानसिकता के शिकार होते हैं जो इतिहास से सीखने की बजाय उसका प्रयोग एक ढाल के रूप में दोषियों के बचाव लिए करते हैं।

सामाजिक परिवेश पर बुरा असर

हमें विचार करने की जरुरत है कि पिछली बार भी ऐसे ही कुछ लोग थे जो अपराधियों का हौसला अफजाई कर रहे थे,उन्हें फूल माला पहना रहे थे। जिसका असर हमारे सामाजिक परिवेश पर होता है। दोषियों को अपने घिनौने कृत्य पर कोई पश्चाताप नहीं होता। उन्हें पापी बताने के बदले रोल मॉडल बना दिया जाता है। इसका परिणाम एक और मॉब लिंचिंग के रूप में सामने आता है।
हम इतिहास की गलतियों को सुधार तो नहीं सकते परन्तु इससे सीख लेकर हम भविष्य में इस समस्या से निजात पा सकते है। मरने वाला कितना भी संगीन जुर्म का आरोपी क्यों ना हो उसे अनियंत्रित भीड़ द्वारा सजा देना कानूनन बिल्कुल जायज़ नहीं है। समाज और देश में अमन और शांति कायम करने के लिए और मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरत है दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर उदाहरण पेश करने की ताकि भविष्य में कोई इस जुर्म को दुहराने का दुस्साहस नहीं करे क्योंकि राजनीतिक स्तर भले ही गिर जाए राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर बिल्कुल नहीं गिरना चाहिए।
  © सन्नी कुमार मिश्रा

विराट फॉर्म का वनवास एक दिन समाप्त होगा

आज मैच देखना शुरू किया नींद आ गई, पहली पारी बीतने के कुछ देर बाद नींद खुली। स्कोर देखा तो आरसीबी ने 23 अप्रैल वाला अपना इतिहास कायम रखा था। ...